दिल अटको तोरा चरणकमल में विवेचन
"दिल अटको तोरा चरणकमल में" एक प्रसिद्ध भक्ति गीत (भजन) है, जो जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भगवान के चरणों में समर्पण और भक्ति की भावना को व्यक्त करता है। इस गीत का भावार्थ है कि अब मेरा मन (दिल) आपके चरणकमलों में ही अटका हुआ है; मुझे संसार के किसी भी भौतिक सुख में रुचि नहीं रही।
जैन दर्शन के अनुसार विवेचन:
- चरणकमल में अटकना का अर्थ है आत्मा का झुकाव और समर्पण तीर्थंकर भगवान (या अरिहंत) के चरणों में, अर्थात् उनके बताए हुए मार्ग—सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र—की ओर होना।
- जैन भक्ति का मूल तत्व है कि आत्मा संसार के मोह, माया, और भोग-विलास से हटकर मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर हो। यह गीत इसी भावना को दर्शाता है कि अब साधक का मन संसारिक वस्तुओं से हटकर केवल भगवान की भक्ति और उनके उपदेशों में ही रम गया है।
- वैराग्य और समर्पण: इस भजन में वैराग्य की भावना झलकती है, जो जैन साधना का मुख्य अंग है। जब जीव को संसार की असारता का अनुभव होता है, तब वह भगवान के चरणों में शरण लेता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: भगवान के चरणों में मन अटकने का अर्थ है कि साधक आत्मा की शुद्धि, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह आदि जैन सिद्धांतों के पालन में तत्पर है।
संक्षेप में:
"दिल अटको तोरा चरणकमल में" जैन भक्ति और वैराग्य का सुंदर भाव है, जिसमें साधक अपने मन को भगवान के चरणों में समर्पित कर, मोक्ष की ओर अग्रसर होने का संकल्प लेता है।
यदि आप इस भजन या इससे जुड़े किसी विशेष श्लोक, अर्थ या जैन दृष्टिकोण से और जानकारी चाहते हैं, तो कृपया स्पष्ट करें।