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प्रति दिन पूजा करने वाले श्रावक श्राविकाओ को जानता अजानता होने वाली आशतना से बचने के लिए :-
प्रभुजी का प्रक्षालन होने के बाद पाटलुंछन से पबासण को शुद्ध करना। मुलायम एवम उत्तम सूती वस्त्र से परमात्मा को तिन बार अंगलुंछ्ना करना।प्रभुजी को पूजा करने को जाने से पहले पुरुष को ललाट पर तिलक और स्त्रिओ को बिंदी का तिलक करना चाहिए l
(भगवान की आज्ञा शिरोधार्य करता हूँ)
फिर प्रभुजी को बरास(शुद्ध बरास वापरना) पूजा करना उसका दोहा-
शीतल गुण जेहमा रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग, आत्म शीतल करवा भणी, पूजो अरिहा अंग।
बरास पूजा याने नव अंग पूजा जैसे नही करनी है वास्तव में प्रभुजी को विलेपन करना है।
प्रभुजी को हमारे नाख़ून का स्पर्श ना हो उसका खास ध्यान रखना है और अशताना से बचना है।
प्रभुजी की चंदन पुजा करते समय
1. दाये -बाये चरण अंगूठे पर तिलक करना। @
2.ढींचणे पर तिलक करना दाये -बाये
3.कन्डे पर तिलक करना दाये -बाये
4.कंधे पर तिलक करे दाये -बाये
5 मस्तक (शिखा)पर तिलक करे।
6..कपाल ललाट पर तिलक करना।
7. कंठ पर तिलक करना।
8.हृदय पर तिलक करना।
9.नाभि पर तिलक करना।
इस प्रकार नव अंग पर अनामिका से प्रभुजी को वाटी में से चन्दन लेकर पूजा तिलक करना।
पूजा करते समय ऊँगली को छोड़कर अपने शरीर के किसी भी अंग या वस्त्र का प्रभुजी की प्रतिमाजी को स्पर्श नही होना चाहिए।
प्रभुजी का स्पर्श पूजा या तिलक करो उतना समय ही करना चाहिए। नव अंगे पुजा क्रम से करनी चाहिए। पूजा करते वक्त कोई भी स्तोत्र दोहा आदि मन में बोलना चाहिए। परमात्मा की सिद्धचक्र की,गणधर की और बाद में देव देवी की इस क्रम में पूजा करनी चाहिए।
पूजा करने वालो को ध्यान रखना चाहिए की प्रभुजी की पूजा नव अंग पर एक बार ही करनी चाहिए बार बार या किसी के नाम से पूजा नही करनी चाहिए। पूजा करते वक्त प्रफुलित होकर आनन्दित होना चाहिए ।
तीर्थंकर परमात्मा जी के नव अंग की ही पूजा की जाती है l
नव अंग १. अंगूठा २. घुटना ३. हाथ ४. कंधा ५. मस्तक ६. ललाट ७. कंठ ८. ह्रदय ९. नाभि ॥
तीर्थंकर परमात्मा जी के नव अंग की ही पूजा क्यों की जाती है ?
प्रश्न १. अंगूठे की पूजा क्यो की जाती है ?
उत्तर तीर्थंकर परमात्मा जी ने केवलज्ञान करने के लिए तथा आत्म कल्याण हेतु जन~जन को प्रतिबोध देने के लिए चरणों से विहार किया था, अतः अंगूठे की पूजा की जाती है !
प्रश्न २. घुटनों की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर . घुटनों की पूजा करते समय यह याचना करनी चाहिए की हॆ परमात्मा !साधना काल मे आपने घुटनों के बल खडे रह कर साधना की थी और केवलज्ञान को प्राप्त किया था मुझे भी ऎसी शक्ति देना की में खडे~खडे साधना कर सकु l
प्रश्न ३. हाथ की पूजा क्यो कि जाती है ?
उत्तर तीर्थंकर परमात्मा जी ने दिक्षा लेने से पूर्व बाह्म निर्धनता को वर्षिदान देकर दुर किया था और केवलज्ञान प्राप्ति के बाद देशना एवं दिक्षा देकर आंतरिक गरीबी को मिटाया था उसी प्रकार मे भी संयम धारण कर भाव द्रारिद्र को दुर कर संकू !
प्रश्न ४. कंधे की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर . तीर्थंकर परमात्मा जी अनंत शक्ति होने पर भी उन्होने किसी जीव को न कभी दुःखी किया न कभी अपने बल का अभिमान किया वैसे ही आत्मा की अनंत शक्ति को प्राप्त करने एवं निरभिमानी बनने कि याचना कंधों की पूजा के द्वारा की जाती है ॥
प्रश्न ५. मस्तक की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर तीर्थंकर परमात्मा जी केवलज्ञान प्राप्त कर लोक के अग्रभाग सिध्दशिला पर विराजमान हो गये है उसी प्रकार की सिद्धि को प्राप्त करने के लिए मस्तक की पूजा की जाती है ॥
प्रश्न ६ ललाट की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर तीर्थंकर परमात्मा जी तीनो लोको मे पूजनीय होने से तिलक के समान है उसी अवस्था को प्राप्त करने के लिए ललाट की पूजा की जाती है ॥
प्रश्न ७. कंठ कि पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर . तीर्थंकर परमात्मा जी ने कंठ से देशना दे कर जीवो का उद्धार किया था इस प्रयोजन से कंठ की पूजा की जाती है ॥
प्रश्न ८. ह्रदय की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर तीर्थंकर परमात्मा जी ने उपकारी और अपकारी सभी जीवो पर समान भाव रखने के कारण ह्रदय की पूजा की जाती है ॥
प्रश्न ९. नाभि की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर नाभि मे आठ रुचक प्रदेश है जो कर्म रहित है मेरी आत्मा भी आठ रुचक प्रदेशों की भाँति कर्म मुक्त बने इसी भावना से तीर्थंकर परमात्मा जी के नाभि की पूजा की जाती है ॥